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Sangeeta Sharma

Abstract

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Sangeeta Sharma

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यादें

यादें

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देखी न आकाश गंगा ही

न वो चलते तारे

न वो आपस की बातें

न हँसते खेलते सारे।


न कोई टूटा तारा देखा

न कोई मन्नत माँगी

न कोई देखी उड़न तश्तरी

न कोई जन्नत माँगा


अब तो तपती जून में भी न

पुर की हवा चलाई है

न ही दादी माँ ने कथा

कहानी कोई सुनाई है।


अब न सुबह परिन्दों ने

गा गा कर हमें जगाया है

न ही कोयल ने पंचम में

अपना राग सुनाया है



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