यादें
यादें
देखी न आकाश गंगा ही
न वो चलते तारे
न वो आपस की बातें
न हँसते खेलते सारे।
न कोई टूटा तारा देखा
न कोई मन्नत माँगी
न कोई देखी उड़न तश्तरी
न कोई जन्नत माँगा
अब तो तपती जून में भी न
पुर की हवा चलाई है
न ही दादी माँ ने कथा
कहानी कोई सुनाई है।
अब न सुबह परिन्दों ने
गा गा कर हमें जगाया है
न ही कोयल ने पंचम में
अपना राग सुनाया है
