यादें
यादें


अब न दिन वो सुहाने न राते हसीन,
उलझनो मे उलझ रह गई जिन्दगी ।
एक था दौर जब एक मुस्कान को,
लाख कोशिश थे करते हमारे सभी ।
आज हंसती हुई जिदंगी देखकर,
गम के सागर से है वो निकलते नहीं ।
अपना हिस्सा कभी थे जो देते हमे,
आज हक मारते उनको लज्जा नहीं ।
मुझको कांधे बिठाकर कर पकड जो चले,
दूर वो हो रहे आज हमसे है क्यो ।
प्रश्न है ये कठिन इस पे सोचा नहीं ,
दोष अपना भी औरो के ऊपर मढा ।
काटकर त्याग अर्पण चरण प्रेम के,
कह रहे है कि अब प्यार चलता नहीं ।
प्रेम और प्रेमियो के ह्रदय की कसक,
प्रेम सच्चा किया जिसने समझे वही।
स्वार्थ की सुन्दरीके जो आगोश मे ,
प्रेम क्या है कभी कभी जान सकते नहीं ।