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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Fantasy

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Fantasy

यादें...

यादें...

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सयाना दिल

नन्हे बच्चे सा होने

लग जाता है

जब भी तुम्हें 

याद करता है।


यादों में 

बहुत सी बातें है

उधार जैसी

मगर तुम्हें लौटाने

को दिमाग राजी

नहीं होता।


रख देती हूँ

यहां-वहां ऊपर-नीचे

अक्सर उछाल के

डाल देती हूँ

रोशनदान की तरफ

पहुंच से दूर।


कभी नहीं रखती

उन्हें मैं दरवाजे के पास

बनी ताक में

न ही कभी रखती हूं 

पूजा की जगह।


दिमाग

चौकन्ना हो कर

नजर रखता है

खामोश बैठे उस 

बच्चे की हर

हरकत पर।


जंग लगी यादें,

वो सुइयाँ होती हैं जो

सीती नहीं 

कुछ भी आपस में

सिर्फ जहर बुझी 

होती हैं।



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