याद आ रहीं
याद आ रहीं
मुझे याद आ रहीं,
वह बहती हवाएँ,
वो घिरती घटाएँ ,
वो बरखा की रिमझिम,
वो हम और तुम
दोनों
अकेले
भीगती बरसात में।
वहीं एक छाता
बेंत का बुना था,
उसी के नीचे
रखी दो कुर्सी,
एक में समाये थे हम दोनों।
तुम में हम
या हम में तुम
किसे पता था।
वो बेसुधी का क्षण,
वो आँखों में तिरता वसन्त,
बहके थे हम दोनों
बहकी थी हवा
बहका था समां।
मुझे याद आ रही,
वह भीगी मिट्टी की,
सोन्धी सोन्धी गन्ध,
वह बहती बहती हवाएँ ,
वह घिरती घटाएँ,
नथुनों में भरती जा रही,
वह सोन्धी सोन्धी गन्ध।
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