याद तेरी जब आती हैं...
याद तेरी जब आती हैं...


सुर्ख हवाओं में लिपटी,
याद तेरी जब आती हैं...
सुकून की चादर ओढ़ाकर,
रात को हमें सुलाती है...
नैन बिछाए उन पलों का,
इंतजार किया हम करते हैं...
रैन भिगोए फिर आखों से,
बारिश की बूंदे आती हैं...
समझे ना ये किस्सा कोई,
लाख भले हम सुनाते हैं...
बिन कहे तेरी याद हमें,
हर मर्ज की दवा दे जाती हैं...
चीखते है हम लिखते है हम,
सन्नाटों की शोर में...
थक जाते है जब हम कभी,
तो कलम फिर से पकड़ाती है...
पन्नो के सिलवटो में छिपकर,
कई बार हमें निहारा करे...
अल्फाजों की परिधान लपेटे,
फिर वो दुनिया के सामने आती हैं...
लोगों से कहकर काफी कुछ,
काफी कुछ फिर छुपाती है...
याद तेरी बिन बताए,
याद किसी की किसी को दिलाती है...
सुर्ख हवाओं में लिपटी,
याद तेरी जब आती हैं...
लिखते कहा है हम कुछ भी,
वो ही तो सब लिखवाती है...