याद आ गई
याद आ गई


डूबता सूरज देखा तो जिंदगी की शाम याद आ गई।
हम कितने तनहा हैं यह बात याद आ गई।।
दुनिया की भीड़ में होना चाहा गुम भी,
सहना चाहा सारा गम रहकर चुप भी,
पर नदी थी एक, तोड़कर बांध आ गई।।
जाने कितनी शामें काटी चुपचाप इंतजार में,
क्या यूं ही जीता है इंसा मर मर के यूं प्यार में ?
प्यार में ये दूरी ,ये खालिश कहां से आ गई।।
जानती नहीं सह पाएंगे और कितने गम,
खुदी को यूं ही मिटा तो ना पाएंगे हम,
क्या रेत पे लिखे नाम है, लहर आई मिटा गई ?।।
देखे थे सतरंगी सपने कितने प्यारे,
पर ना सच हुए वह बेचारे गम के मारे
ढकती उनको अंधेरे से जाने कहां से घटा आ गई।।