व्यथा
व्यथा
एक दिन इलेक्ट्रॉनिक्स
की बंद दुकान में
टीवी को गुस्सा आया
चीख़ चीख़ कर वह
अपनी व्यथा बताया
कहने लगा मैं
बुद्धू बक्सा बनकर
लोगो पर राज किया करता था
खाना बने न बने
मैं चलता रहता था
मेरे आने से घर मे
कहानी घर घर की पंहुची हैं
सभी डिज़ाइनों से भरी पड़ी
साड़ी की बगल वाली दुकान
मेरी वजह से चलती थी
एक समय ऐसा भी आया था
लोग पूजा कर हार पहनाया करते थे
फिर बाद में रामायण चलते थे
लेकिन मोबाइल आया और
स्मार्टली मेरा मार्किट छीन लिया
क्या हक था तुझको बुद्धू से
स्मार्ट बन उसको लूट लिया
कुछ कहता स्मार्ट फोन
बगल में एकलौते
रेडियो से रहा न गया
वह वकालत में
स्मार्ट फ़ोन के
झट से उतर गया
कहने लगा बुद्धू भाई
तुम् ही थे जिसने
मेरी मांग गिराई थे
कांधे पर लिए घूमते थे मुझको
गोदो में लिए घूमते थे
गांव के चौपालो पर मेरी ही
हुकूमत चलती थी
वहां भीड़ प्रेम सभी के
मेरे कारण बनती थी
मैंने संजय बन लोगो को
गांव गांव तक क्रिकेट दिखाया है
मत भूलो तिरासी वर्ल्ड कप
मेरे द्वारा ही ज्यादा पंहुचाया हैं
मैं तुमसे बेहतर था
फिर भी मुझको
लोगो ने तिरस्कार किया
मेरे ही वैज्ञानिक ने
तुझे और मुझे मिला
इस स्मार्ट फ़ोन का
अविष्कार किया
तू आज भी जल रहा
क्योंकि आज रेडियो
टीवी, कंप्यूटर सभी एक
स्मार्ट फ़ोन में पल रहा।