चाचा-चाची कि कहानियां
चाचा-चाची कि कहानियां
एक चाचीजी बहुत कंजूस थीं।
अपनी ननदों कोअच्छे कपड़े नहीं देती।
पर खुद कि छोटी बहन कोअच्छे कपड़े देती।
चाचाजी ने एक दिन तरकीब निकाली।
शाम को उदास चेहरा बनाकर घर आयें।
तो चाचीजी ने उनसे पुछा क्या बात हैं।
आज आप बड़े उदास लग रहें हों।
तो चाचाजी ने बताया किआपके
पिताजी का घर आग से नष्ट गया हैं।
आग लगने से सब कुछ नष्ट हो गया हैं।
तो चाचीजी बोली किआप गांव में
से एक किराया कि गाड़ी मंगवाईये।
मैं कुछ खाने पीने और बिस्तर वगैराह
मेरे पिताजी के घर भेजती हूं।
चाचाजी योजनानुसार गाड़ी लेकरआए।
काफ़ी सामान गाड़ी में भरा गया था।
उसमें कुछ गुदड़ी एक ऊंनी थैलीभेजी।
जब चाचाजी गाड़ी लेकर रवाना हुए।
तों चाचीजी कि पीहर कि तरफ़ नहीं निकले।
चाचाजी योजनानुसार गाड़ी सेअपनी बहिन
के घर सामान पहुंचाने चलें गये।
चाचीजी ने वापिस आने पर पुछा कि
मेरे पिताजी के घर पर कितना नुक़सान हुआ था।
क्याआप सारा सामान सही सलामत
वहां पहुंचा के आये हैं।
तब चाचाजी बोले आपके पिताजी का
घर जला ही नहीं था।
कोईआग लगने से नुुकसान नहीं हुआ था।
मैंने तुम्हें झुठ बोला था।
और वह सभी सामग्री मेरी बहिन के घर
उसके ससुराल पहुंचा दिया हैं।
तब फिर चाचीजी बोली।
अरे कोई बात कौनी
म्नेेह गुदड़ी पुदडी़ कोनी हाले
पण ऊन री थैली घंणी हालै हैं।
तब चाचाजी ने पुछा ऊनथैली ऐसा क्या था।
चाचीजी बोली उसमें मेरे नगद रुपए थें।
जो मैंने बड़ी मुश्किल से बचत किए थे।
तो फिर चाचाजी ठहका लगाकर हंसे।
कि मेरी बहिन को नहीं दे सकती हों।
खुद के पापाजी को देने को तैयार हों गई।
पापाजी को देने से बड़ी खुुश हो रही थी।
मेरी बहिन को देने कि बात पता चली।
तोआपका चेहरा रोने लायक हो चुका हैं।
इस प्रकार चाचाजी ने चाचीजी
को सबक सिखाया।
औरतें पीहर पक्ष को ज्यादा महत्व देती हैं।
ससुुराल कि तरफ़ कम ध्यान नहीं देती हैं।
यह बहुत ग़लत बात हैं।
यहीं पारिवारिक रिश्तों में तनाव पैदा
होने का प्रमुख कारण हैं।
महिलाओं को पीहर पक्ष ससुराल पक्ष
दोनों को एक समान महत्व देना चाहिए।
ताकि सांझा परिवार प्रथा कायम रहेंगी।