वस्तुओं की दुनिया
वस्तुओं की दुनिया


सुविधा की लत ने तुझे क्या बना,
वस्तुओं की चाह ने तुझे भी वस्तु बना दिया
कभी तुझमें बहती थी प्रेम रस धारा,
सुख खरीदने की चाह ने ह्रदय को य़ांत्रिक बना दिया।
परिवार को कभी तू अपने अंदर जीता था,
सफल होने की चाह में परिवार की महत्ता भूला दिया।
ये जीवन है अपनो के साथ जीने का नाम,
स्वार्थ की आग में तूने अपनो को भूला दिया।
वस्तुओं की कीमत दे तू उसे ले आया,
उसको तूने घर में सजाय़ा।
वस्तुओं की खातीर तूने प्रेम को ठुकराया,
परिवार से विलग अपनी दुनिया तूने बसाया
हाथ से तेरे सब चला गया,
तू पछताता रह गया।
वस्तुओं और प्रेम का अंतर जो तूने जाना होता,
यंत्रों से नहीं प्रेम को जो तूने पहचाना होता।
सब कुछ होता पास तेरे,
सुख के होते भंडार भरे।
वस्तु से सुख न होता जीवन में,
प्रेम सम्बंध ही ज़िवनाधार है होता।
प्रेम बिना जीवन है सूना,
ज्यों जल बिन मीन का जीवन सूना।