वसंत की होली
वसंत की होली
अँधेरे और उजालो की तरह
ऋतुएँ तो आती जाती रहती है,
नदी के प्रवाह जैसे जीवन की नौका
यहाँ सदैव बहती रहती है ।
एक ऋतु जिसमे झूम उठे
ये धरा और ये गगन,
पूरी कायनात को चल जाये पता
जब हो रहा हो वसंत ऋतु का आगमन ।
पुष्प और पत्ते भी खिल उठते है
अपने जीवन की मुस्कराहट संग,
वीरान पड़ी बागानों को मिले सन्देश की
समाप्त हो रही है उनके जद्दोजहद की जंग ।
इंसान के मुठ्ठी भी बंध जाये
भिन्न भिन्न रंगो की झोली,
मन मस्तिक भी संग चल पड़े
लेके दोस्तों की टोली ।
कहीं चलती है होलिका दहन की कथा
तो वृन्दावन में छिड़ती है प्रेमलीला की प्रथा,
सबकी आत्मा में छिपा है भिन्न आस्था
हर गली नुकड़ करती है अपनी पूरी व्यवस्था ।
गुलाल, अबीर , और पिचकारी के चलते हैं फवारे
शरीर के सारे अंग कहाँ बचते हैं इससे बेचारे,
खुद को न पहचान सके ऐसी होती है तस्वीरें
मस्ती भरे माहौल में बंध जाये ये पल हंसी सुनहरे ।
दोस्तों, इन भिन्न रंगो के समक्ष
हम सभी हमजोली है,
खूब खेलो और न करो पक्ष और विपक्ष
क्यूँकि ये तो होली है ।
