वर्षों पुरानी थी ये कहानी !
वर्षों पुरानी थी ये कहानी !
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निकल पड़ा था मैं एक ऐसी यात्रा पर,
क्या पता कैसा होगा यह सफर !
मंजिल भी थी बहुत ही दूर,
जाने पर भी मुझे होना था मजबूर।
वर्षों पुरानी थी अधूरी ये कहानी,
ताजा थीं यादें पर बहुत पुरानी,
सोचा था हमने संवारेंगे उसे पूरे
पर हो ना पाया वैसा, छोड़ दिए हमने अधूरे।
अभिलाषा थी पाने को वो मंजिल,
जिसे पाने के लिए तत्पर था मेरा दिल,
पर कोरोना ने मुझमें में डाल दिया ऐसा तासीर,
जिसने पूरी तरह बदल दिया मेरी तकदीर ।
नैया में रही अब अकेली वो मुसाफिर,
मल्लाह का भी था इसमें कोई ना दोष
अपनों ने बदला अपना तकदीर,
पर मिलने को आज भी जिंदा है वही जोश।