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Deepak Murmu

Abstract

4.8  

Deepak Murmu

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जीत की होली

जीत की होली

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248


बुराई की जीत कभी न होगी,

सच्चाई के सामने सदा वो झुकेगी, 

सदियों से चली आयी है ये परंपरा

प्रेम और द्वेष की ये दो कहानी

जिसमें समा है प्रकाश और अंधेरा

ताजा-ताजा हैं यादें, लेकिन वो बहुत पुरानी,

अंधेरा पल भर में समा जाती है

सदा के लिये उदित होती है सत्य की वो रोशनी।


जीत की है ये दूसरी दीवाली

भाईचारा की है, ये एक ही रंगोली,

लाई है भाई लाई है, 

खुशियों की रंगोली लेकर वो आई है।


शुभ संदेश लेकर ज्यों वो निकली, 

त्यों तितली आकार कली से बोली,

कितनी सुंदर लगती हो! तू तो निकली बड़ी भोली

बेसब्री से इंतजार थी जिसकी,

अब पड़ी है डोली आँगन में उसकी

फिर किसी ने ऊँची आवाज़ में बोली 

ज्यों ही निकली गली-गली वो टोली 

रंग बरसे ! रंग बरसे ! रंग बरसे ! ! !

झूमो, नाचो और गाओ, आ गई है खुशियों की होली।



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