STORYMIRROR

प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Abstract

3  

प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Abstract

वर्षाऋतु

वर्षाऋतु

1 min
413


वर्षाऋतु का आगमन, भू पर चारों ओर।

उफन रहीं नदियाँ सभी,नाच रहा मन मोर।।१


तृप्त हुई सूखी धरा, पुलकित हुआ किसान।

स्नेह बीज रोपित हुआ, धर धानी परिधान।।२


आग उगलता भानु भी, ऐसे हुआ विलुप्त।

गर्मी से राहत मिली, पड़ा रहा वो सुप्त।।३


समय-समय की बात है, है नियती का खेल।

कुछ ऐसे पथ पर चलें, रहे प्रकृति से मेल।।४


छेड़छाड़ अब छोड़ दो, बनो प्रकृति के मित्र।

प्रेम प्रकृति से बन रहा, सुन्दर जीवनचित्र।।५


 फसलें लगती झूमती, हैं धानी परिधान।

लाती कृषकों के अधर, पर सुन्दर मुस्कान।।६


नदी, पोखरे भर गये, उफन गया तालाब।

इंन्द्रधनुष जैसा दिखे, आँगन खिले गुलाब।।७




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract