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Pratibha Garg

Classics

4.8  

Pratibha Garg

Classics

वर्षा ऋतु हृदय लुभाये

वर्षा ऋतु हृदय लुभाये

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वर्षा ऋतु अति हृदय लुभाये

मधुवन की भी शान बढ़ाये।


पुष्प सुगंधित खिल हर डाली

मोहक पवन हृदय हरषाये।


हरी भरी नव वधु सी झूमे

वसुधा फिर ऋतुराज सजाये।


माटी की सोंधी खुशबू भी

हर्षित तन मन करती जाये।


स्वर्ग धरा पर अब आ उतरा

‘प्रति’ वर्षा गुणगान सुनाये।


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