वर्ष दो हज़ार इक्कीस
वर्ष दो हज़ार इक्कीस
उतार चढ़ाव से भरा यह साल दे गया यादें बेमिसाल
लेखन से मैं विस्मृत थी
घर में ही मैं उलझी थी
बच्चों ने बोध कराया
लेखन याद दिलाया
हर दिन बन गया विशेष
ज्ञात हुआ
करना अभी कितना है शेष
कलम करती नहीं कोई भेद
हर दिन कुछ मै लिखती हूँ
एक नए विश्वास से उठती हूँ
बीता साल अनुभव बहुत दे गया
अभिन्न जो लगा
वह सबको कह दिया ॥