वृक्ष तुम विशाल हो
वृक्ष तुम विशाल हो
तुम हो विशाल तुम हो विराट
है विस्तृत गर्वित मुख ललाट
तुम भीमकाय तुम धरा राज
जीवन का हो तुम मधुर साज़।
गर्मी सहते, सर्दी सहते
हँसते रहते, कुछ न कहते
बदले मौसम बदले ऋतुए
तुम अडिग, मौन, अविचल रहते।
जीवन क्या है ? तुमसे जाना
जीवन का मकसद पहचाना
जीवन की इस मृगतृष्णा में
हर हाल में मुझको मुस्काना।
कतरा-कतरा अपना तुमने
जन मानस हित में लगा दिया
खुद धूप सही, पर छाया दी
कुछ न माँगा, सब वार दिया।
बचपन से पचपन तक तुमने
हर हाल में मुझको बहलाया
जब आया अंत समय मेरा
शैया बन मुझको सहलाया ।
जीवन को प्रेरित करते हो
हर सांस में "जीवन" भरते हो
आंधी आयें पतझड़ आयें
तुम फिर सजीव हो उठते हो।
सबको देते - ठोकर सहते
फिर भी तुम उफ़ न करते हो
किस मिटटी के तुम बने "मौन"
इतना सब सहते रहते हो!
तुम निर्विकार, तुम हो विराट
जीवन परिभाषित करते हो !