वक़्त की गर्दिश
वक़्त की गर्दिश
पल पल ढलते वक़्त की
गर्दिश में बैठे हैं हम
हाथों में क्या कर लें क़ैद
वक़्त की गुस्ताखी को हम?
यही वक़्त था नाज़ हमे था
कभी खुद पर कभी उस पर
आज मगर इस सच्चाई के
रूबरू हो ही गये हैं हम ।
नहीं अमर है आन बान और
शान तुम्हारी सुन ले वक़्त,
तू भी एक दिन गर्दिश में
मिट जाएगा हमेशा के लिये वक़्त।।
