वक़्त का परिंदा.....!!
वक़्त का परिंदा.....!!
वक़्त का परिंदा कही छुपा बैठा है....
चंद ख्वाहिशों को साथ लिए...
नज़रों से दूर जा बैठा है.....
ताल्लुक़ दिल के आरज़ू से लगाये बैठा है...
तन्हा दिल साथ लिए खुद को ...
राज़दार बनाये बैठा है......
तड़प, इश्क़, जुदाई के सारे एहसास कर बैठा है....
कैसे कहे कि अपने ही अंदर...
ज़ख्म हज़ार सीये बैठा है...
खामोश नज़रों से एतबार किये बैठा है...
कोई कुछ भी समझे ...
वो इन्तजार किये बैठा है......
वो वक़्त का परिंदा भी मुस्कुराकर बैठा है....
कि नंदिता “वक़्त” ही वक़्त की...
आड़ लिये चुपचाप बैठा है........!!