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Kishan Negi

Abstract

4.5  

Kishan Negi

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वोदका की अमृत वर्षा

वोदका की अमृत वर्षा

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कानन वन में आज़ चारों ओर मस्ती का माहौल था

हर कोई अपने कामुक दिल में मादकता की उमंग लिए

इस सुबह का इंतज़ार कर रहा था

हवा भी बेचैन हो कर इधर उधर भटक रही थी

पत्तियाँ भी आँखों में मदहोशी लिए सर-सर कर रही थी

गुलाब और लिली भी अपनी नशीली अदाओं से

सबका मन मोह रही थी

ऊँची बर्फीली चोटियाँ भी 

अजीब-सी अकुलाहट से तड़प रही थी 

भवँरे भी मस्ती में गुनगुना रहे थे

रंगबिरंगी तितलियाँ मस्ती में झूम रही थी 

न जाने क्यों आज जंगल में हर कोई व्याकुल था

हर कोने में एक अजीब-सी अनजानी हलचल हो रही थी

दमकते सूरज की किरणें भी सुबह से अधीर थी

जंगल में हर तरफ़ मदहोशी का माहौल था

आज हर कोई इस पागलपन में खो जाने को बेताब था 

ऐसा लगता जैसे किसी शुभ घडी का बेसब्री से इन्टर्ज़ार था 

सभी आपस में इस रहस्य के बारे में कानाफूसी कर रहे थे

बार बार उत्सुकता भरी आँखों से बादलों की ओर देख रहे थे

शायद आज भीगे बादलों ने पानी के बदले 

रम, व्हिस्की और वोदका की बारिश 

करने का ऐलान किया हो



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