वो सुबह खूबसूरत आई थी
वो सुबह खूबसूरत आई थी
जाने कितनी रातों के बाद
तेरे कदमों की आहट लिए साथ
सुबह वो खूबसूरत आई थी ।
लेकर चाहतों की धूप,
तेरे स्पर्श की गरमाहट तन मन में उतर आई थी,
वो खूबसूरत सुबह आई थी ।
फैल रही थी फिर चाय की खुशबू हवाओं में,
थोड़ी अदरक और इलायची चार हाथों ने मिलकर कुटी थी,
तपती सांसों की आंच पर, चाय जाने कितनी देर खौली थी ।
वो सुबह खूबसूरत खुशबुओं से भर गई थी,
वो सुबह खूबसूरत आई थी ।
खनकती चूड़ियों की शिकायतें तेरे होठों पर जा बैठी थी
तेरे कांधे पे खीची सिंदूरी लकीरो ने,
बातें अनकही कह दी थी ।
जाने क्यों शरारत पर आंचल भी उतर आई थी,
मेरे सीने से ढलक कर तेरे हाथों में जा बंधी थी,
सिमट गई थी लज्जा तेरे सीने से लग कर,
कि लालिमा उगते सूरज की, गालों पर उतर आई थी,
घूट -घूट प्यास होंठों ने, होंठों से पी ली थी,
वो सुबह बेहद खूबसूरत आई थी।