वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल बड़े याद आते हैं
रहते थे हम बिंदास अपने गाँव में।
ना कोई डर था ना खौफ
सुबह की वो सुहानी सी सुबह
फर फर पड़ता वो बरफ ।
चाय के बिना ना होती थी सुबह
बड़ा याद आता हैं वो सतरंगी पल।
पहाड़ों से आता वो मधुर संगीत
बरबस ही दिल को सुकून दे जाते था।
वो गाय का रँभाना बड़ा गुदगुदा जाता है।
हां बचपन के वो सतरंगी पल बड़े
याद आते है।
वो दादी की कहानी वो मौजों की रवानी
वो खेतों की हरियाली वो कोयल वो गौरया
सब शामिल थे ।
सतरंगी पल अब कहाँ
अब कहाँ वो आबो हवा।
गाँव में एक बन्दर का आ जाना
हर एक के साथ करता वो आँख मिचौली।
हम बच्चों के मन को गुदगुदा जाता था वो पल
संतरे ,माल्टा खुबानी ,सेब और भी जाने
कितने ही फल को खाने पेड़ों से तोड़ कर खाना
किसी सतरंगी पल से कम नहीं था।
हां बरसात में बड़ा डर लगता था हमें
वो बादल का गड़गड़ाहट
पर सुकून दे जाती थी।
चारों तरफ हरियाली का अम्बार।
कोयल का गाना
गाय, बैलों का जंगल से घर आना।
जीवन जीना सिखाते थे।
वो सब सतरंगी पलों को याद करके आज भी मन गुदगुदा जाता है।