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वो रात

वो रात

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आज फिर

पुराने खतों को टटोल कर

उनमें सुकूँ के लम्हें तलाशने की कोशिश की है।


भूली बिसरी सब यादें

हर लिफाफे में तलाश करने की कोशिश की है।


मोहब्बत की दास्तां बयां करते हर्फ

कुछ गुम से होने लगे हैं अब

स्याही के निशान धुंधले पड़ रहे हैं।


खामोशी की चारदीवारी में

मैंने जज्बातों की आँधियों को क़ैद कर लिया है।


उमड़ते सैलाब को

इस कदर अनदेखा किया है

मानो अंधेरी रात में दूर तक देखने की संभावना न हो।


वक़्त ने कोशिश की

वहम की बेड़ियों में मुझे जकड़ने की

मगर दिमाग ने शायद

हकीकत से समझौता कर लिया है।


इन सियाह रातों को

अपना नसीब मान लिया है अब उसने

ख़ामोश सड़कों में वो आज भी उस दिन की यादें

उस लम्हे की यादें

भुलाने की कोशिश करता है।


जिस दिन खतों से भरे लिफाफे

इज़हार-ए-मोहब्बत की वो सारी निशानियाँ लिए

तुमने मेरी गली के कोने में मुड़ते हुए मुझे देखा।


सामने से तुम्हें कुचलता हुआ

मेरी मोहब्बत का जनाजा निकाले

मय में डूबे हुए,


आँखो पर लापरवाही का परदा लगाए,

वो लोग पल में ओझल हो गए

और छोड़ गए, उम्र भर की तन्हाई।।






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