नारी
नारी
ज़िन्दगी के हर पग अपने हक़ के लिए लड़ती तू नारी
पुरुषों की इस दुनिया में अपने लिए लड़ती तू नारी
सौम्य चंचल मोहक हर रूप है तेरा मनभावन
काया छोड़ अपने गुणों से ही आगे बढ़ती तू नारी
एक हाथ में ज़िम्मेदारी दूजे में सपनों की उड़ान
धरती वायु आकाश हर क्षेत्र में अव्वल आती तू नारी
तेरे चीर को हर कर तेरी उड़ान पर जो लगाए पाबंदी
उन शैतानों की इस बस्ती में किसी से ना डरती तू नारी
दुर्गा तू ही है और रौद्र काली का भी स्वरूप है तू
इस धरा पर दुष्टों का संहार भी अब करती तू नारी
