वो... परिस्थितियां जब
वो... परिस्थितियां जब
उस परिस्थिति में,
कई बार,
कुपात्र पर की गई दया।
इंसान को,
दया का पात्र बना जाती है।
और गुनहगार की,
सजा का भागी बना जाती है।
बिना गुनाह के,
कभी जिंदगी सजा पाती है।
जान कर भी,
कभी यह समझ नहीं पाती है।
परेम करे, भला करे।
सही अर्थ तभी जिंदगी,
सही अर्थ में जी जाती है।
पर गलत आदमी पे की दया,
आपको भी गुनहगार कर जाती है।
हम इंसाफ न भी कर पाये।
कुदरत इंसाफ कर जाती है।
गुनहगार को,
तो सजा मिलती ही है।
तरस खाने वाला भी,
कुदरत के इंसाफ से बच नहीं पाता है।
जितना - जितना साथ दिया हो,
उतनी - उतनी सजा जरूर पाता है।
