वो महिला कहलाती है
वो महिला कहलाती है
घर सजाते-सजाते बीत गई साल गए,
माँ 18 की हो जाओगी तो घर बदल जाएंगे ना,
अपने घर में आजादी न ससुराल ही मेरा अपना है,
मर्दों की हकीकत है मेरा तो बस अपना है,
लड़की होना पाप हो गया जैसे यह अपराध हो गया,
नीची जाति से नीचे भी तो एक जाती है,
भद्र भाषा में वह महिला कहलाती है,
खुला खबर एक हुई खुलासा मिट गई एक दिल की आशा,
बता बापू कैसे मेरा देश आजाद हुआ ?
मर्द हुए बलवान तो क्या दुर्बल हर एक नारी है,
मर्द करे तो सब सही नारी करे तो पाप है,
क्या यही है न्याय ?क्या यही तुम्हारा इंसाफ है ?
कहते थे तुम हर नारी मां दुर्गा का अवतार है
ऊंचा करे आवाज तो वही गलत हर बार है,
हर कोई चाहता है बेटी को अफसर से व्यहाना है,
कितनों ने चाहा बोलो बेटी को अफसर बनाना है,
मेरी व्यथा समझने में तुमको सदी लग जाएगी,
मैंने तुमको जन्म दिया तुम मुझको ताना देते हो,
मुझको गिरा नीचे तुम खुद को समाज कह लेते हो,
मैं चलती हूँ अकेले तुम भला बुरा कह देते हो,
चलूं किसी मर्द के साथ तुम चरित्रहीन समझ लेते हो,
मेरे जन्म की खबर तुम्हें गुस्सा भर-भर देती है,
बेटी होना कलंक हो गया ऐसा तुम्हारा रंग हो गया,
घर के कामों में गलती हो तो मेरी परवरिश को कोसते हो,
मर जाए पति मेरा तो मुझको श्रापित बोलते हो,
क्या यही तुम्हारा सच यही तुम्हारी सोच है,
मेरी पीड़ा का मोल नहीं तुम्हें अपने सुखों की खोज है,
जब सरेआम कहीं मेरा बलात्कार हो जाता है,
तुम्हारी निकृष्टता से मेरा साक्षात्कार हो जाता है,
सच कहूं तो खुद को तुम संभाल नहीं सकते,
तुम मिटा सकते हो मुझे संवार नहीं सकते,
तुम नज़र लगा सकते हो नज़र उतार नहीं सकते।