शक्ति नाद
शक्ति नाद
दुर्गा पूजा से ही जाना जाता है बंगाल को,
कौन भूल सकता है कलकत्ता के पंडाल को,
महालया से माँ का अवतार सजता है,
पंचमी से माँ का दरबार सजता है,
माथे पर सिंदूर के साथ 16 श्रृंगार सजता है,
षष्टी से दर्शकों का भरमार निकलता है,
सप्तमी को सांझ की आरती का अपना महत्व है,
अष्टमी पुष्पांजलि के लिए होती है,
नवमी में माँ विशाल रूप में होती है,
दशमी में शास्त्रों और शस्त्रों की पूजा होती है,
विसर्जन के समय हर आँख रोती है,
कास फूल से अनुमान लगाया जाता है,
108 कमलों का हार चढ़ाया जाता है,
अल्पना और आरती से माँ की
प्रातः-संध्या का राग सजाया जाता है,
देशोप्रियो से देशबंधु तक,
दमदम से बारासात तक,
प्रिंसेप घाट से काली घाट तक,
साल्ट लेक से लेक टाउन तक,
हाबरा से बर्दमान तक,
आसनसोल से पुरुलिया तक,
दुर्गापुर से पार्क सरकस तक,
सियालदह से वीरभूम तक,
धूम सुनहरी छा जाती है,
हर आँखों की पुतली पर,
जब छवि माँ दुर्गा की आ जाती है,
बच्चे बूढ़े सब में कितनी ऊर्जा देखो आ जाती है,
दशमी के दिन जब सिंदूर से सुहागन सब खेलती है,
साड़ी पहनाकर माँ को जब वरन करने आती है,
लगता है बेटी माँ का श्रृंगार सजाने आयी है,
सहस्त्र हाथों से माँ सबको आशीष देने आयी है,
यही रमणीय शक्ति की पूजा बंगाल की अपनी शोभा है,
युगों युगों से यही हमारी संस्कृति का साथ है,
हर एक बच्चे के सर पर माँ दुर्गा का हाथ है,
