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Shyam Kunvar Bharti

Classics

5.0  

Shyam Kunvar Bharti

Classics

वो गुरु कहलाता

वो गुरु कहलाता

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करे जो मन बुद्धि दूर अंधेरा

शाम जीवन करे शुबह सम फेरा

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता।


बिन गुरु ज्ञान काही मिलता नहीं

थाप कुम्हार दिसा सही कही मिलता नहीं

अक्षर ज्ञान या परम ब्र्म्ह ज्ञान।


कविता हो या तकनीक विज्ञान

हर मार्ग वही है दिखलाता

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता।


धरती आकास सब कागज करूँ

जगत तरु मै सब कलम धरूँ

कोटी कोटी पोथी लिखूँ।


रामायण महाभारत बाँचूँ

महिमा महान गुरु लिखा नहीं जाता

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता।


विद्यालय से महाविद्यालय तक सफर 

पूरा होता गुरु अपना हाथ पकड़

प्यार दुलार फटकार गुरु ही देता

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता।


दया की मूर्ति ज्ञान की ज्योति

स्थान प्रथम सब देव से होती

मैं अज्ञानी तुम महाज्ञानी तुम्हारी जय हो

मैं सेवक तुम स्वामी तुम्हारी जय हो।


कृपा तुम्हारी मै लोहा कंचन बन जाता

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता

 सब देवो के देव परम गुरु तुम हमारे

आदि अनादि सम महादेव देते सहारे।


करूँ मैं नमन गुरु के चरण

करना दूर तम स्वीकार मेरा वंदन

भारती गुरु चरण शीश है झुकाता

गुह्य ज्ञान सिखाता वो गुरु कहलाता।


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