वो दिन कब आएंगे
वो दिन कब आएंगे


आज उन महफिलों,
उन रौनकों को तरस गया है दिल
जिनसे कभी हम तंग आ जाया करते थे....
दोस्तों के साथ वो बेमतलब की बातें
वो पार्टियां, वो खेल ,वो मुलाकातें
आज लगती हैं, इतिहास की बातें....
पता नहीं पीने के बहाने दोस्त मिलते थे
या दोस्तों के बहाने पीते थे.....
परेशानियों से उधड़ा हुआ
तब भी था सबका दामन
बातों, मुस्कुराहटों के धागे से मिलकर सीते थे....
कुछ देर की मुलाकातें
बहुत देर तक साथ रहती थी
मन में भरा सब निकालकर
ज़िन्दगी की नदी फ़िर साफ़ होकर बहती थी...
बातें तो अब भी हो सकती हैं
पर अब वो बात नहीं होती
फ़ोन पर देख लेने से वो मुलाकात नहीं होती।
अब तो बस यही दुआ है खुदा से
कि जल्द ही वो महफिलों का दौर वापिस आये
और आज का ये दौर
फ़िर ख़ुदा किसी को ना दिखाए!