बेटियों से ना कहना
बेटियों से ना कहना
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कुछ बातें सुनकर सुनकर
तंग आ गई हैं बेटियां
तुम पराया धन हो
ससुराल ही तुम्हारा असली घर है
अपने को समर्पित कर सबकी सेवा करना
जहाँ तुम्हारी डोली जाये
वहाँ से ही अर्थी निकले
तुम्हें हर हाल में समायोजन बिठाना है
चाहे कैसे भी हो हर रिश्ता निभाना है
परिवार की सेवा में अपना सर्वस्व
अर्पित करते जाना है
माता पिता को एक आदर्श बेटी बनकर
दिखाना है।
बस बस बस
इन्हीं बातों से कितनी बेटियां
आज भी मन मारकर जीती हैं
अमृत समझ विष के प्याले पीती हैं
क्यों नहीं समझते हम
कि बेटी भी इंसान है
उसके भी कितने सपने
उसके भी अरमान हैं
वो भी उड़ना चाहती है
खुले आकाश में
छू लेना चाहती है
सितारों को
फ़िर क्यों उसके पंखों पर
ज़िम्मेदारियों के पत्थर बांधकर
कहते हो खुश रहो, सुखी रहो
ज़िम्मेदारियों से डर नहीं उसे
पर जो उसके सपनों को कुचलकर
रिश्तों को निभाना उसे नही भाता
वो चुप भी रहे तो भी
गलत तो गलत ही रहता है
वो सही नहीं हो जाता
इसलिए उन्हें मत बांधो
खोखले आदर्शों में
कि बंधकर भी इंसान ज़िंदा तो होता है
पर वो ज़िन्दगी नहीं होती
वो बेटी है , इंसान भी है
उसकी अपनी एक उड़ान भी है
उड़कर छू लेने दो उसे
अपने हिस्से का आसमां
कि एक दिन रौशन हो जाएगा
उसका भी जहां
यही सिखाना है बेटियों को
कि अपनी मेहनत से अपना मकाम
बनाना है तुम्हें
तुम किसी से कम नहीं हो
ये साबित करके दिखाना है तुम्हें
ये साबित करके दिखाना है तुम्हें।