वो भगवान नहीं है
वो भगवान नहीं है
ये कैसा अल्लाह राम,
या कैसा ये ईसा भगवान,
जो कहता जन्नत दे दूंगा,
जो लोगे तुम अपनों के प्राण,
ये कैसा है धर्म और,
ये कैसी मानव जाति है,
जो अपनों का लहू गिरा,
जन्नत के स्वप्न सजाती है,
ये कैसा ज़िहाद युद्ध,
ये क्या खोना क्या पाना है,
अपनों के शव की सीढ़ी चढ़कर,
ये कौन से स्वर्ग को जाना है।
वो कौन सा ईश्वर है,
जो इतना छोटा हो सकता है,
उसकी तो सृष्टि सारी,
तब कौन विभाजन करता है।
ये कौन से ग्रंथ हैं जो,
मानव में नफ़रत घोल रहे,
ज़िंदा मानव की क़दर नहीं,
और मौत से जीवन जोड़ रहे।
है धर्म नहीं वो पाक कि,
जो खून बहता है जग में,
वो भगवान नहीं हो सकता है,
जो आग लगाता है घर में।
इन धर्म पंथ की ग्रंथों की,
मैं खुलकर निंदा करती हूँ,
जी नफ़रत का विस्फ़ोट कराए,
उसे भगवान नहीं कह सकती हूँ।
