वो औरत होती है।
वो औरत होती है।
जिसके पायल की छन-छन से,
हर घर की सुबह होती है,
कदमों की आहट से जिसके, हर शाम होती है
अपने आँचल में लिए ख़ुशियाँ सबके लिए,
घर आँगन में बिखेरती है।
" वो एक औरत ही होती हैं "
बेटी, माँ, बहन, भाभी बन कर
हर रिश्ते को जिसने निभाया है।
जिम्मेदारियाँ घर की निभाई, और
सफलता की बुलंदियों को भी जीया हैं।
ना उम्मीदों कें अंधेरे रास्तों में
उम्मीद की एक रोशनी जो होती हैं ।
"वो एक औरत ही होती हैं "
तोड़ दिया जिसने हर बंदिशों को, हर जंज़ी
रों को
कराया अपने अस्तित्व से पहचान,
भीड़ में दौड़ रही इस दुनिया को।
हर मुश्किल घड़ी में, जो आशा की किरण होती हैं,
"वो औरत ही होती हैं "
बना लिया है जिसने इस जहां में,
अपनी एक अलग ही पहचान,
मिल रहा जिसे हर कार्य -क्षेत्र में
मान और सम्मान,
हर हालात का सामना अपनी मुस्कराहट
से करती हैं ।
आँखों में हो कितनी भी नमी,
हर जगह ख़ुशियों के रंग ही भरती है।
"वो सिर्फ एक औरत ही होती हैं "