वंदों गुरु पद पद्म परागा ......
वंदों गुरु पद पद्म परागा ......
वंदों गुरु पद पद्म परागा ........
गुरु कृपा अनंत है ,नमन करुं मैं बारंबार
चरण शरण हूं आपकी, लेना मुझे उबार
श्री गुरु ज्ञान पीयूष है, करे मनुज उद्धार
मानव पाये विमल यश, हो जाये भव पार
जब अंधकार से लड़ने, गुरु का ज्ञान साथ हो
तम की छाती चीर तब, नये युग का प्रभात हो
बाती बन गुरु पीता है, तिल तिल कर अंधियार
जीते सदा उजाला, करता है तम का प्रतिकार
शैशव में माॅ॑ से मिलता है, निश्छल ममता का आंचल
यौवन में गुरु भर देता है, विद्या का अलौकिक महाबल
गुरु ने हमें ब्रह्मा वना दिया है, विश्वकर्मा वना दिया है
घनघोर आॅ॑धियों में जलना, अविरल अविराम सिखा दिया है
काॅ॑टों भरी डगर पर, निष्कंटक चलना सिखा दिया है
गुरु ने ही हर पात्र में, परस्थिति जन्य ढलना सिखा दिया है
तम की महानिशा में भी,सुरक्षित पलना सिखा दिया है
परस्थितियां हों विपरीत, खुशहाल जीना सिखा दिया है
हर तरह की चुनौतियों को, दृढ़ता से नथना सिखा दिया है
ब्यापें चहुॅ॑ ओर संकट बड़े,चाहे छल क्षदम पाॅ॑व डाले
आस्तीनों में छुपे हों घातक,विषैले कैसे भी नाग काले
गुरु ने हमें पारंगत कर दिया है, डरेंगे अब शस्त्र- शास्त्र वाले
चरित्र ,संस्कारों पर कहर ढा रहे, शिक्षा को व्यापार बनाने वाले
आओ गुरु महिमा का सत्कार करें, फिर गौरव शाली भव्य भारत की नींव धरें
गुरु की गुरुता का स्थापत्य करें, अपने को विराट बनायें सनातन संस्कृति के भाव भरें
जब अंधकार से लड़ने गुरु का ज्ञान साथ हो
तम की छाती चीर तब, नये युग का प्रभात हो।
