विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास
विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास
विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है,
जब प्रकाश के चोले में तम रहता मेरे पास है,
तो उसके भी श्याम वर्ण होने का मुझे आभास है,
तब विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है।
जब घने अकेले जंगल में मेरा आवास है,
तो उसे वैकुण्ठ बनाता मेरा विश्वास है,
अकेले होने पर भी किसीके साथ की आस है,
तब विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है।
जब लगे मेरी साँस - साँस मेरे गले का फांस है,
फिर भी मुझे मारने आई तलवार दिखे जैसे कोई घाँस है,
जब हर क्षण किसी के साथ होने का एहसास है,
तब विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है।
जब सुनायी देती मुझे सिर्फ मेरी ही आवाज़ है,
एकाकीपन में आँधियों सी चलती मेरी श्वास है।
पर जब स्नेह से सिर पर किसी
के हाथ फेरने का होता एहसास है,
तब विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है।
सब कहते एक ही सी बात है,
उन्हें हरि पर विश्वास है।
मैं कहूँ हरि ही मेरा विश्वास हैं,
इसलिए हर समय विश्वास पर गहराता मेरा विश्वास है।