विश्वास करो, हे माँ भारती!
विश्वास करो, हे माँ भारती!
वीर हूँ मैं, हे माँ!
शरीर छूटा है,
मन से देश के साथ हूँ।
लौटा हूँ तिरंगे में लिपटा हुआ,
सीना छलनी हुआ गोली बारूद से।
हर एक शत्रु पर भारी थे,
भारत माता के ये सपूत।
विश्वास करो, हे माँ भारती!
धरती का ऋण चुकाने आएगा,
ये बेटा हिन्दुस्तान का,
बार बार हर बार।
विनती सभी भारतीयों से
कि मिल जुल कर रहे
तो हम इंडिया वाले हैं
समस्त विश्व पर भारी।
उस भारत का क्या कोई
बिगाड़ लेगा?
है जिसका मस्तक,
श्वेत धवल हिमालय के
मुकुट से सुशोभित।
धरा जिसकी पावन है
गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि सरिताओं से।
भिन्न भिन्न प्रदेश की माला से
सजा जिसका कंठ।
भाँति भाँति की संस्कृतियों की निधि,
जहाँ संगठित हो,
बनाती अनेकता में एकता की
अनूठी मिसाल।
भारत वर्ष के चरण धोता,
विशाल हिंद महासागर।
पूरब में बंगाल की खाड़ी
व पश्चिम में अरब सागर
लहराते हुए भारत के
नैसर्गिक सौंदर्य है बढ़ाते।
हे माँ, भारत के कण कण से
वीरों और वीरांगनाओं
का देश के लिए
हर पल आगे आना
और देश की खातिर
कुछ भी कर जाने का हौसला
ही पहचान है,
हम भारतवासियों की!
जय हिंद! जय भारती!
