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R Rajat Verma

Inspirational

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R Rajat Verma

Inspirational

विनती

विनती

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बचपन से घर-घर क्या खेली,

घर में कैद होकर रह गई,

देख भ्रात को बाहर जाते,

उसके पीछे मैं गई,

मारा उसने चौका ऐसा,

गेंद बहुत दूर तक गई,

जो मै दौड़ी उसके पीछे,

मिट्टी में मैं गिर गई,

लगे ठहाके जोरों के,

शर्म मेरी तब उड़ गई,

फेंकी गेंद तब मैंने ऐसे,

भाई की विकेट भी उड़ गई।

लौटी घर जो सीना ताने,

जान चक्र वो डर गई,

जो आया घर पे बापू,

मां बोली वो कर गई,

रुकी मैं बरसो से अब तक,

हर घड़ी हद में रह गई,

बेटी की है पैदा ऐसी,

जो अब हर हद तोड़ गई,

नाज़ है इस कोख पे अपनी,

जो अपना अस्तित्व वो जी गई,

मत रोको उसको अब तुम,

जाते विनती वो कर गई।


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