विजय-रथ
विजय-रथ
प्रिय डायरी दे मंत्र वह जिससे
जीत हमारी निश्चित हो जाए।
हर हाल में मिले सफलता सबको
निराशा तो उन्हें कभी छू न पाए।
राम रथ देगा विजय ही निश्चित,
शौर्य-धैर्य रूपी दो पहियों वाला।
ध्वजा हो जिसकी सत्य रूप की
और सदाचार रूपी पताका वाला।
विवेक से नियंत्रित हों इन्द्रियां,
परहित बल की शक्तियां इसे चलाएं।
इसकी गति के नियंत्रण के हित,
समता- दया-क्षमता की रस्सी लगाएं।
अंतर्मन की प्रेरणा तय करें नीति संचालन,
विरक्ति से करके बचाव संतुष्टि भरा हम करें प्रहार।
बुद्धि शक्ति के बल से चलें जैसे कहता है विज्ञान,
निर्णय सभी हों दया भरे और पूरी तरह से उदार।
अचल हो मन बच्चे सा पावन,
और सदा उन्मुक्त नियम पालन में।
श्रेष्ठ अनुभवी लोगों के विचार,
देंगे सफलता इस जग रूपी कानन में।
असफलता निराशा कभी न ब्यापे,
संतुष्टिदायक होगा यह विजय का रथ।
दृढ़ संकल्प और ईश कृपा से,
होंगे अग्रसर सदा हम नियत प्रगति पथ।
