विघालय और उसकी स्मृतियां
विघालय और उसकी स्मृतियां
विघालय से न जाने ये कैसा नाता जुड गया, यहाँ के कण कण से याराना सा बन गया।
यहाँ के रोम - रोम मे बीते हुये काल की बाते और यादे थम गयी,
घर जैसे आनंद का ये देवमंदिर न जाने क्यो पैमाना बन गया,
न जाने विघालय से ये कैसा नाता जुड गया,
ये कैसा याराना बन गया।।
बीता काल स्मृतियो के रूप मे याद आने लगा,
हसने रोने का यह सिलसिला ना जाने क्योंअश्रुयो रूप में बाहर आने लगा।
बीता हुआ काल आंखों के सामने चित्रित तौर पर सामने आने लगा।
याद आने लगा कैंटीन पर मित्रों के साथ चिल्लाना और शिक्षकों को सताना।
याद आने लगा बाहर जाते समय मित्रों के साथ वाहन में चिल्लाना हंसना हंसाना।
कुछ शिक्षकों से ना जाने ये कौन सा अजीब सा नाता जुड़ गया,
उनके बिना तो जीवन सि्थर वाहन सा हो गया।
उनका डांटना ड पटना गिरने पर उठाना और समझाना अब याद आने लगा अश्रुयो की निर्झरनी द्वारा बाहर आने लगा,
इस देवमंदिर से ना जाने यह कैसा नाता जोड़ गया यहां के कण-कण याराना सा बन गया।।
ना जाने यह विद्यालय से कैसा नाता जुड़ गया ,घर जैसे आनंद का यह देव मंदिर पैमाना सा बन गया।
ना जाने क्यों आज इसकी मीनारों में दशरथ दिखने लगे और नियति कैकई सी हो गई,
लगने लगा अब हम को वनवास मिल गया
यह देव मंदिर आज पराया सा हो गया,
हमारी खुशियों का सिलसिला अब ना जाने क्यों थम सा गया,
आनंद का यह पैमाना ईश्वर की मर्जी से हमसे दूर हो गया।
यहां की चरण धूल आज सर पर लगाने से ना जाने क्यों गंगा में डुबकी लगाने से हर्ष मिल गया,
हर्ष और उल्लास का यह सिलसिला अश्रु रूपी धारा द्वारा लक्षित होने लगा,
इस देव मंदिर के कण-कण हनुमान के भक्ति हमारे ह्रदय मैं ना जाने क्यों बसने लगे,
न जाने ये कैसा याराना जुड़ गया,
न जाने यह कैसा नाता जुड़ गया।।
