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Sonam Kewat

Action Classics Inspirational

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Sonam Kewat

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विद्या का सार या व्यापार

विद्या का सार या व्यापार

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एक वक्त था जब लोग कम पढ़े-लिखे थे,

पर पुस्तकों को माथे पर चढ़ाया करते थे।

एक और वक्त है जब ज्यादा पढ़े-लिखे लोग

पुस्तकों को जमीन पे कुचल के चल दिया करते हैं।

जिस देश में पुस्तक को विद्या और 

विद्या को सरस्वती कहा जाता था,

आज उसी देश में उसी विद्या का भरपूर 

अपमान भी किया जाता है।

मुझे याद है बचपन के कई स्कूलों में,

मां सरस्वती की प्रार्थना या वंदना होती थी।

हर स्कूल के अंदर जाते ही सरस्वती की 

मूर्ति या फिर तस्वीर देखने को मिलती थीं।

तब लोग स्कूल को विद्यामंदिर कहा करते थे,

वैसे यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं क्योंकि 

आज भी यह मंदिर हर स्कूलों में दिखाई देता है।

हां, आज भी है, मैंने भी देखा है अपनी आंखों से।

पर अफसोस...

मैंने यह भी देखा कि लोगों के दिल में

अब पहले जैसे सरस्वती की जगह नहीं रही।

एक स्कूल में मैंने यह भी देखा कि

स्कूल के बाहर की सरस्वती पर धूल की परत पड़ी थी,

लेकिन प्रिंसिपल के कुर्सी के ऊपर टंगी हुई तस्वीर

जरूर से ज्यादा ही चमक रही थी।


इसलिए अब शायद यह आश्चर्य की बात नहीं है,

क्योंकि जहां कोई पुजारी नहीं, वहां कोई मंदिर नहीं।

जहां कोई मंदिर नहीं है, वहां कोई विद्या नहीं।

हम सब जानते हैं कि आज के जमाने में 

कई लोगों के लिए पढ़ाई विद्या का सार नहीं 

बल्कि व्यापार है व्यापार! 



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