वहशत
वहशत
वहशत की खुलकर हो रही हैं बारिश
बाहर निकलने से भी डर लगता हैं अब तो ।
धमाकों से छलनी हो रहा हैं धरती का सीना
जमीं पर पाँव रखने में भी डर लगता हैं अब तो।
दहशतगर्दी का सामान लदा हुआ कंधों पर
आवाज निकालने में भी डर लगता हैं अब तो।
बेजुबान, बेगुनाहों के खून से लथपथ रास्ते
पानी पीने से भी डर लगता हैं अब तो ।
सोच और अक्ल का पड़ गया अकाल
नकद चुकाने से भी डर लगता हैं अब तो ।
धर्म का उन्माद हैं अपनी चरम पर 'नालंदा '
दौड़ते झंडों से भी डर लगता हैं अब तो ।