'' प्यारी द्रौपदी ताई ''
'' प्यारी द्रौपदी ताई ''
अबके आग लगाने वाले हनुमान नहीं।
क्यूँकि लंका में अब सिया वर राम नहीं ॥
देखो आज फिर कैसा संयोग हुआ ?
फिर शबरी के मीठे बेरों को राम ने छुआ ॥
रामायण और महाभारत की याद फिर से हैं आई ।
द्रौपदी में शबरी फिर से लौट आईं ॥
अब होगा फिर से विनाश बुराई का ।
आँखें खोल के देखो, जादू द्रौपदी आई का ॥
मन में है वही स्नेह, कर्मठता और सच्चाई ।
और नव किरणें जो जग में घोल सके अच्छाई ॥
भारत को फिर शबरी के मीठे बेर चाहिए ।
खाने वाले राम और भारत को राम से शेर चाहिए ॥
द्रौपदी ताई अब ज़रा न पीछे हटना ।
सोन चिरैया को फिर न पड़े कटना ॥
आई कहूँ या ताई, कह लूँ जो आपको हो भाता ।
राष्ट्रपति तो केवल पद हैं, आप तो हो भारत की माता ॥