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Shyama Sharma Nag

Abstract

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Shyama Sharma Nag

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वेदना भीष्म की

वेदना भीष्म की

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सबके अंदर एक भीष्म है

जो प्रतिज्ञाबद्ध है

प्रभाव डालते हैं

समय और परिस्थितियाँ

तिस पर भी वह आबद्ध है


कुरुक्षेत्र का रण हो

या भावों का क्षण हो

शरों की शय्या पर

पड़ता है भीष्म आहत

प्रतिज्ञाबद्ध होने के भी बावत

अपने से ही अपना प्रश्न

 करता है बार -बार


पाया क्या इस दुनिया में आकर

माँ का वचन निभाकर

अपनों ने अपनों को तोड़ा

निज सुविधा से सबने जोड़ा

क्या यही इति थी इस जीवन की

उस पर यह नर संहार

करता है वह अपने से

यही प्रश्न बार -बार


जिजीविषा अदम्य थी

पाँव में बेड़ियाँ बंधी थीं

खुलकर जीने की इच्छा

घुट गई अंदर ही अंदर

भावों का समंदर था

तिमिर अति गहन -सा था

उस पर पल -पल का प्रहार

करता है वह अपने से

यही प्रश्न बार -बार।


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