अजीब है ये रास्ते
अजीब है ये रास्ते


यूं ही भटक जाता हूं मैं रास्ते
कल मंजिल तक जो थे जाते
पता नहीं कैसे अभी तक तो थे चलते
और कभी जगह पर ही ठहर जाते
कितने अजीब है ये रास्ते।
खुशी में रफ्तार से भागते
गमों में भी अपनी चाल ये चलते
कभी सीधे कभी टेढ़े मेढ़े
जिंदगी का हर पल मेरे साथ ये जीते
कितने अजीब है ये रास्ते।
कभी किसी खास को देख
अपना रंग ही यह बदलते
अभी जो रफ्तार में थे
अचानक रुक रुक के ये चलते
हाँ कितने अजीब है ये रास्ते।
कभी बढ़े कभी छोटे
टेढ़े मेढ़े कभी सीधे-सीधे
तों कभी गड्ढों वाले
और कभी मक्खन से
अपनी ही धुन में मग्न से
हाँ सच में कितने अजीब है ये रास्ते।