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Onkar Awachare

Abstract

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Onkar Awachare

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बहुत कम लफ़्ज़ जानता हूं

बहुत कम लफ़्ज़ जानता हूं

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बहुत कम लफ़्ज़ जानता हूं 

जो मेरे हर एहसास को बयां कर सकते हैं

हर लम्हे पालक सोचता हूं

लफ्जों में मैंने पाया ही ना कर पाऊं


कभी खुश हुए भी रो देता हूं

कभी आंसू छुपा कर हंस देता हूं

दुख में गुस्सा होता हूं गुस्से से कभी डर जाता हूं

कैसे बताऊं क्या मैं महसूस करता हूं


सोचता हूं कि जज्बातों को काबू कर लूं

हर एहसास को जो महसूस किया एक सा बना लूं

इन्हें बयां ना कर पाने का दुख भुला दूं

हंसने रोने का फर्क ही मिटा दूं


जो सोचता हूं वो जो सच कर लूं 

पर खुद को ना भूल जाऊं

जज़्बात जो मिट जाए मेरे इंसानियत ना भूल जाऊं

कहीं जीना ना भूल जाऊं।


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