मौत
मौत
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क्या इस रास्ते है वो आख़िरी
सिरा
जिस तक चलने को जिंदगी
हूं मैं मानता
क्या उस सच है वह रूप
जिस से सब मुंह मोड़ते
जिंदगी नाम पर्दे के पीछे
जिसे पर छिपाए है रखते
क्यो इसका नाम सुनते ही
मेरी रुह है कांपती
दर्द से भी ज्यादा इसकी
छांव है डराती
क्यो इससे दूर हूं मैं भागता
जिंदगी भले नरक सी क्यूँ ना हो
फिर भी मौत से ही डरता
रात होते ही
उस अंधेरे में उजाला हूं
ढूँढता
इस मौत के सफर में
जिंदगी के सहारे हूँ चलता
इकलौती वो मंज़िल सबकी
न कोई उसे चाहता
