मेरी मंजिल मेरी राह
मेरी मंजिल मेरी राह


दूसरों की चीजों पें क्यों हक़ जताना चाहता हैं
जो नहीं तेरा उसे क्यों तू पाना चाहता हैं
दूसरो के सपनों को तू अपने से ऊंचा क्यों मानता है
मंजिल तेरी पर राह तू औरों से क्यों पहुंचता है।
लोग तूझे बताएंगे बहुत पर तेरी सुनेंगे नहीं
तू हर बार चिल्लाऐगा पर सन्नाटा हीं पाऐगा
तू चलता जा धीरे धीरे सबकुछ समझ आएगा।
अपने अन्दर की आवाज को दबा मत
सोच बदल पर सोच छुपा मत
राह को बदल पर राह भटक मत
दिमाग की सुन पर दिल को रोक मत।