STORYMIRROR

Anjneet Nijjar

Abstract Tragedy

4  

Anjneet Nijjar

Abstract Tragedy

वहम था मेरा

वहम था मेरा

2 mins
23.9K

वहम था मेरा,

कि दिखाई देता है तुम्हें,

सुनाई देता है तुम्हें,

पर सच में यह वहम था मेरा,

तुम पढ़े-लिखे वाइट collared लोग,


तुम्हें कहाँ दिखाई देता है,

सड़कों पर पैदल चलता मजदूर,

वक़्त और हालातों से मजबूर,

देखता है तुम्हारी तरफ़ उम्मीद से,


पर तुम्हें कहाँ कुछ दिखाई देता है,

उसके पसीने से भीगे कपड़े सुनाते हैं,

उसकी दुशवारियों की दास्तान,

सूनी आँखें उसकी कहती है,

हज़ार कहानियाँ उसके दुखों की,


पर तुम्हें कहाँ कुछ सुनाई देता है,

अपनी ज़िंदगी के चंद आसान सवालों में उलझे तुम,

तुम्हें कहाँ महसूस होता है,

मासूम मज़दूरों का दर्द, ठोकरें खाने का दंश,

कभी भी उजड़ जाने का दर्द,


कुछ न पाने का दर्द,

कुचले मसले जाने का दर्द,

अरे! उन्हें इंसान न समझे जाने का दर्द,

पर तुम्हें कहाँ कुछ महसूस होता है,

वहम है मेरा कि तुम्हें सब दिखाई देता है,


तुम्हें सब सुनाई देता है,

तुम्हें सब महसूस होता है

आँखों वाले अंधे हो तुम सब,

सब सुनने वाले बहरे हो तुम सब,


संवेदनहीन पत्थर हो तुम सब,

पत्थर हो तुम सब।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract