वादों का मंच सजा होता है
वादों का मंच सजा होता है
देश में भ्रष्टाचार बड़ा पुराना है,
हर कोई दबंग पूंजीवाद का दीवाना है।
वादों का मंच सजा होता है,
पक्ष विपक्ष का दगा होता है।
काश भीड़ पहचानती नेता,
शायद फिर देश धर्म होता।
न जानते लोग जमाने में क्या होता,
न जाने दर्द समाज देश का नेता।
जाति धर्म उलझाये हमारे नेता,
छीन छीन कर खाते देते ठेका।
बात हर वर्ग सर्वहारा नीति की है,
सखा भाव मिटाकर राजनीति की है।
पूज्यनीय,माननीय महानुभाव क्या होता है,
ऊंचे मंच से मिथ्या अभिवादन क्या होता है।
जब कथनी करनी में अंतर मिलता है,
सत्य से खाली अभिनंदन क्या होता है।
