"उत्सव"
"उत्सव"
तुम बिन
कुछ पल भी
जैसे हो
एक लम्बा सफ़र
बियाबान में
तुम बिन
नरम सुनहरी बालू
ज्यों बिछा दिये हों
शूल...धरा पर
तुम बिन
उज्ज्वल चन्द्र किरण
बरसाती अंगारे
तुम बिन
मेंह की
शीतल फुहारें
तन को छूती
चाबुक सी
तुम बिन
फूलों से भी
नहीं आती
महक वो
भीनी-भीनी सी
तुम बिन
पूनम भी
अंधेरी
अमावस्या सी
तुम हो
तो महक जाती
हवा भी
हो जाती धूप भी
शीतल चांदनी सी
दिन दशहरा सा
रात दीवाली सी
हर पल उत्सव
हर दिन
मदनोत्सव
तुम से
बस तुम से...