उस्ताद
उस्ताद
रब ही तो है
मुअल्लिम सब का
उसी ने ही तो ये जहान बनाया
ज़िन्दगी बनायी और जीना सिखाया
कभी वलीद बन के
कभी मरकजी़ बन के
कभी जिगरी दोस्त बन के
तो कभी गैर बन के
जीवन के हर मोड़ पर
इन्हीं में से कोई एक था
सबब बन के सबक़ सिखाने
हर इक क्वालिब के पीछे
तू ही तो छीपा था
कभी मैंने नवाजा कभी हक्कारा
वाहा रे तेरी उस्तादी
कभी तू ने नहीं ठुकराया
खामियां मुझ में ही थी
हर सबक को ज़ेहन में
उतार नहीं पाया
फिर भी साये की तरह
मेरे साथ साथ राहा
सीधे मुंह कभी
एक लफ्ज़ भी ना बोला
महसूस तो किया बार बार
तेरे वजूद का
पर कभी शुक्रगुजार
ना बन पाया.......