STORYMIRROR

Ayush Kaushik

Abstract

2  

Ayush Kaushik

Abstract

उस दिन

उस दिन

1 min
94

उस दिन काला आसमान था और सूरज भी डरके कहीं जा छिप गया था। 

घर के बाहर कुत्ते रो रहे थे और जो भी अपशगुन हो सकता था वो सब हो रहा था।

अचानक कहीं दूर से एक किरण आती है और आँखें को चीरती हुई पार हो जाती है।

थोड़ी देर बाद मैं देखता हूँ कि एक आकृति मेरी और बढ़कर मुझसे कहती है कि अब अंधेरा खत्म हो जयगा।

उसके बोल मुझे इस दुनिया से अलग जान पड़ते थे और उसपे संशय करने को मेरा जरा सा भी जी नही करता था।

देखते ही देखते उसकी बात सच हुई और अब आसमान फिर से रोशन हो उठा था।

और चिड़ियों की चहचहाने की आवाज़ कानो मे आने लग गयी थी।

अब वो आकृति थोड़ी साफ नजर आ रही थी और वो कोई स्वर्ग से आई देवी जान पड़ती थी।

मन अब मेरा शांत न था और वो जानना उसको चाहता था।

किसी तरह हिम्मत जुटा के मैं उसके पास गया और कहा देवी तुम कौन हो।

उसने कहा मैं तो तेरे ही मन की सोच हूँ जो आज तुझको भयभीत देखा तो खींच लाई मुझे तेरे से जुड़ी वो डोर हूँ।

उस दिन से मैं काले आसमान से डरता नही और कोई अपशगुन मुझे बुरा लगता नही।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract